Sunday, 21 July 2019

गजल by Priy Neetesh Shakya




एक वेवफा ने मुझको, दोषी बना दिया।
जिसको चाहा दिल से, उसने दगा दिया।

थे वे गुनाह हम, गुनहगार बना दिया।
एक वेवफा ने मुझको, दोषी बना दिया।

दामन पे दाग लगाके, मेरा जीना विराम किया।
ये था दिवाना दिल, उसपे गुमान किया॥
क्या भला था उसमें, जो मुझको गवा दिया।
क्या भला था उसमें, जो दिल को गवा दिया॥

वादे किये थे हमसे, निभाये कईं जाके।
मेरे ही अपनों ने, किस्से बताये आके॥
अपनाया जिसको हमने, उसने दगा दिया।
एक वेवफा ने मुझको, दोषी बना दिया।

मुहब्बत में होते इतने गिले शिकवे,
गर में जान जाता।
इन तन्हाइयों में जीना सीख लेते,
कभी इनसे दिल न लगता॥“”

रातों की नीदें उडाके, महफिल सजाई जाके।
रोता छोडा मुझको, खुशिया मनाई जाके॥
खुशियों की महफिल में, मुझको भुला दिया।
एक ...............................................दिया।

थे वे गुनाह हम, गुनहगार बना दिया।
जिसको चाहा दिल से, उसने दगा दिया।
एक ...............................................दिया।
Sorry for wrong word. By Neetesh Shakya(16/07/2019)

No comments:

Post a Comment

Thanks