महिला लोक गीत
आई हूं मैं बुध्द शरण में, हमको शील सिखाय दे रे।
सजना मैं तो बुध्द दिवानी, संकिसा नगरी जाऊं रे॥
संकिसा नगरी मैं सजना, फिर
से मोय घुमाये दे रे।
चिंचा सुजाता पटचारा ने, बुध्द शरण अपनाई रे॥
सजना मैं................................................जाऊं
रे॥
आडंवर में जकडे पडे हैं, अन्धेर नगरी मैं अंधे हैं।
भूत प्रेत के चक्कर में, सब करते उल्टे धन्धे हैं॥
आडंवर को भुलाऊं में, गया
धाम को जाऊं रे।
सजना में
..........................................जाऊं रे।
कुछ जाति अछूती हमसे कहते, ऐसे हिन्द में फिर क्यों रहते।
हम सब चलते बुध्द शरण में, सजना पीछे नांहि हटते ॥
हम तो आये बुध्द शरण में, उसकों
भी घुमाय दे रे।
सजना
में.................................................जाऊं रे।
आई हूं मैं बुध्द शरण में, हमको शील सिखाय दे रे।
सजना मैं तो बुध्द दिवानी, संकिसा नगरी जाऊं रे॥
तथागत
नीतेश शाक्य
1 comment:
Nice
Post a Comment